रूट्स ही फ्रूट्स बनाते है।

जंगलमे घूमते घूमते एक आदमी एक पेड़ के नीचे आराम करने बैठता है।

उसी समय उसे विचार आता है यहां पर पलंग हो तो आराम करने की मज़ा आ जाए। अब जब वो ऐसा सोचता है कि वहां पर पलंग हाजर हो जाता है।

वो आदमी ऐसा सोचता है कि भूख लगी है। अगर भोजन मिल जाएंगे मज़ा आ जाए। इतने में तो छप्पन भोग उसके सामने हाजिर हो जाता है।

वो तो कंफ्यूज हो जाता है इसे कैसे हो सकता है ? बराबर उसी वक्त उसे याद आता है कि यह कल्पवृक्ष होना चाहिए, में जिसके नीचे बैठा हूं, इसीलिए जिसकी इच्छा में करू वो  मुजे मील जाती है।

पर उसी वक्त उसे विचार आता है कि यह जंगल में अगर सिंह आ जाए तो मुझे मार डालेगा। ऐसा सोचते ही, वहां पर सिंह आता है और उसे मार डालता है।

कल्पवृक्ष की यह काल्पनिक वार्ता आप जानते ही है। किन्तु वास्तव में हमारा सब कॉन्शियस माइंड इस कल्पवृक्ष से बिल्कुल कम नहीं है।

वो तो हम जो चाहते है उसी इच्छा को वो पूर्ण करता है।

इतना शक्तिशाली मन हमारे पास है फिर हम क्यों पीछे पड़ते है ?

क्यों हमे मनोवांछित फल से हम वंचित रह जाते है ?

तो फ्रेंड्स अगर हमारे अवचेतन मन को नकारात्मक सन्देश भेजते है तो परिणाम भी नकारात्मक आता है।

हमारे अवचेतन मन में सब शक्यताओ को साकार करने का खजाना छिपा हुआ है। फिर भी हम जो खजाने के लाभ से वंचित हो जाते है उसका दूसरा कारण है हमारी गलत मान्यताएं।

सबसे पहले हम समझे कि ये मान्यताएं क्या है।

हम जिस तरह से वर्तन करते है उसके मूल में है हमारी मान्यताएं।

हम जन्मे तबसे रोज रोज हमारे साथ नए नए अनुभव होते रहते है। उसमे से कई अनुभव मीठे होते है तो कई अनुभव कड़वे होते है।

बचपन से हम जो समाज में और पड़ोस आसपास के वातावरण में हम रहते है।

हम आपचारिक और अनौपचारिक शिक्षण प्राप्त करते है।

हम हमारे आसपास के वातावरण, माहौल अनुभव के साथ जुड़ ते है वैसा ही हमारे विचार बनते है।

ये विचार जब दृढ़ बनते है तब वो  हमारी मान्यता बन जाती है।

जैसे अगर कोई परिवार में शैक्षणिक पर्यावरण है तो स्वाभाविक है कि बचपन से भी वो बच्चे में पढ़ने के संस्कार का सींचन होंगौसी तरह उसकी मान्यता बनेंगी।

जैसी मान्यता होंगी वैसे ही आसपास के वातावरण के बनाव का अर्थ घटन होगा।

अर्थघटन विचार पैदा करता है,

यह विचार का रूपांतर भावनाओं हुआ है,

और अंत में ये वर्तन में परिवर्तित होता है।

अगर किसी मान्यता एशि है कि पढ़ने का कोई फायदा नहीं है।

तो ऐसे विद्यार्थी से बात करते वक्त उसका मन एशा अर्थघतन करेंगा की लेक्चर देके मुझे बोर किया जा रहा है।

यह विचार का रूपांतर भावनाओं में होता है पढ़ के वैसे भी क्या करना है बेकार हो तो रहना है।

इसलिए वो  प़ढ़ाई के प्रति बेदरकार रहता है।

अगर आप अपना वर्तन सुधारना चाहते है तो आपको आपकी मान्यता में बदलाव लाना होगा।

सही और सच्ची मान्यता आपको सफलता (टॉपर्स) की और ले जाती है जबकि गलत मान्यता आपको निष्फलता के नरक में धकेलती है।

हमारी मान्यता हम पर किस तरह से असर करती है एक उदाहरण से समझते है।

एक बार रॉबर्ट को कैंसर होता है। डॉक्टर्स ने रॉबर्ट से कहा कि अब आप पंद्रह दिन से ज्यादा नहीं जी पाएंगे।

उतने में कार्बियोजोंन नामक एक नई और असरकारक दवाकी विज्ञापन हुआ।

मारनें के बाकी दिन की गिनती करते रॉबर्ट की मान्यता बदल गई। अब मेरा अच्छा हो जाएगा। अब के आश्चर्य के बीच में वो घूमता फिरता हो गया और तीन महीने तक खूब काम करता रहा।

एक दिन न्यूज पेपर में समाचार आया कि कार्बियोजोंन कैंसर की असरकारक दवा नहीं है। यह समाचार सुनते ही रॉबर्ट की मान्यता बदल गई। थोड़े दिन बाद कैंसर की असर दिखाई दी और दुखाना शुरू हो गया।

एक महीने के बाद न्यूज में आया कि अगर कार्बियोजोंन का डबल  डोज लिया जाए तो कैंसर मिट जाता है। रॉबर्ट की मान्यता फिर से बदल गई। रॉबर्ट ने उसी प्रकार दवाईयां ली और धीरे धीरे कैंसर मिट गया।

छह महीने के बाद अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के समाचार आया कि कार्बियोजोंन बिल्कुल भी असरकारक नहीं है बल्कि उसकी गलत रिएक्शन आता है। फिर से रॉबर्ट की मान्यता बदल गई और अंत में उसका मृत्यु हो गया ।

इसलिए मन के पास से काम करवाने के लिए यां न करवाने के लिए हमारी मान्यता अति महत्व का काम करती है।

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